राजभाषा हिंदी : क्रमिक विकास

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राजभाषा हिंदी : क्रमिक विकास
डॉ. राजबीर सिंह

प्रस्तावना

भारत में अनेक समृद्ध भाषाएं हैं| इन भाषाओं में हिन्दी एकता की कड़ी है| हमारे संतों, समाज सुधारकों और राष्‍ट्रनायकों ने अपने विचारों के प्रचार के लिए हिन्दी को अपनाया, क्योंकि भारत में यही वह भाषा है जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और राजस्थान के सुदूर पश्चि�मी अंचल से असम के पूर्वी सीमावर्ती भू-भाग तक समान रूप से समझी जाती है| हिन्दी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो समस्त भारतीय जनता को एकता के सूत्र में जोड़ने का कार्य सम्पन्न करती रही है| चाहे किसी भी प्रदेश का कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी भाग में चला जाए, वह टूटी-फूटी हिन्दी के माध्यम से अपने विचारों को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने में सफल हो सकता है|

प्रत्येक राष्ट्र के लिए राष्ट्रभाषा की महत्ता सर्वविदित है| यही कारण है कि पूरी दुनिया में एक भी ऐसा स्वतंत्र राष्ट्र नहीं है जिसने अपनी भाषा को छोड़कर विदेशी भाषा को बोल-चाल या राजकाज की भाषा बनाया हो| बहुत बार यह कहा जाता है कि आधुनिक प्रगति के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है, लेकिन दुनिया के सामने फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली, रूस, चीन आदि देश आधुनिक प्रगति से परिपूर्ण ऐसे राष्ट्र हैं जिन्होंने अपनी राष्ट्र भाषा के माध्यम से वैज्ञानिक, प्रौद्योगिक और औद्योगिक उन्नति के नए प्रतिमान स्थापित करते हुए इस अवधारणा को मिथ्या सिद्ध कर दिया है|

भारत की प्रमुख भाषा

देश की कुल आबादी में से लगभग 40 प्रतिशत से अधिक लोगों की मातृभाषा हिन्दी है जबकि इसकी तुलना में अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा मानने वाले लोगों की संख्या केवल 2 लाख 26 हजार है|1 वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यह तथ्य भी सामने आया था कि हिन्दी भाषियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है जबकि अंग्रेजी को मातृभाषा मानने वालों की संख्या में गिरावट आई है|2 हिन्दी की एक विशेष शैली-उर्दू के बोलने वाले लगभग 5 प्रतिशत हैं| इन दोनों को मिलाकर लगभग 45 प्रतिशत लोगों की भाषा हिन्दी है| इसके अतिरिक्त यदि अन्य भाषा-भाषी लोगों को भी-जो हिन्दी जानते हैं, इसमें शामिल किया जाए तो हिन्दी जानने वाले लोगों की संख्या लगभग 85 प्रतिशत हो जाती है|

कुछ भाषा सर्वेक्षण तो बोलने वालों की संख्‍या की दृष्टि से हिंदी को दुनिया की प्रथम भाषा मानते हैं । इनके अनुसार पूरे विश्‍व में हिंदी जानने व बोलने वालों की संख्‍या 130 करोड़ है जबकि इसकी तुलना में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्‍या 100 करोड़ और चीनी भाषा जानने वालों की संख्‍या 110 करोड़ है ।3 हिन्दी केवल बोलने वालों की दृष्टि से ही भारत की प्रमुख भाषा नहीं है वरन् हिन्दी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसके बोलने वाले भारत के प्रत्येक राज्य में पर्याप्त संख्या में रहते हैं| हिन्दी से इतर अन्य कोई भारतीय भाषा नहीं है जो अपने क्षेत्र से बाहर इतने बड़े समुदाय द्वारा प्रयुक्त की जाती हो| यही नहीं, हिन्दी भारत के हर क्षेत्र में और हर वर्ग के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है| दूरदर्शन और फिल्मों ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में विशेष योगदान दिया है| हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में, भारत के दूरवर्ती स्थानोंअहिन्दी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले अल्पशिक्षित लोगों की भाषा बनाने में इन माध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है|

स्वतंत्रता से पूर्व प्रशासन में हिन्दी

भारत के परिप्रेक्ष्‍य में यदि देखें तो भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 1000 वर्ष पहले हिन्दी का विकास अपभ्रंश से हुआ| वस्तुत: संस्कृत का पालि, प्राकृत और अपभ्रंश के माध्यम से विकसित रूप ही हिन्दी है| इस एक हजार से भी अधिक वर्षों की अवधि में हिन्दी निरंतर विकसित होती गई है| प्राचीन काल में संस्कृत राजभाषा थी| अशोक के शिलालेख पालि और प्राकृत में लिखे गए हैं| इन लेखों पर स्थानीय बोलियों का भी प्रभाव है| आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में राजपत्र और राजभाषा पर विस्तारपूर्वक महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं| उनकी मान्यता है कि शासन की भाषा में अर्थक्रम, संबंध माधुर्य, औदार्य और स्पष्टता का होना नितांत आवश्यक है| उन्होंने प्रज्ञापना, परिहार्य, निसृष्टि, प्राकृतिक, प्रतिलेख और सर्वत्रग आदि 8 प्रकार के सरकारी पत्रों का वर्णन किया है जो तत्कालीन प्रशासन के प्रयोग में आते थे|4 इस प्रकार यह स्पष्‍ट परिलक्षित होता है कि भारतवर्ष में प्राचीन काल में राजभाषा और राजपत्रों के संबंध में विचार-विमर्श होता    रहा है|  

हिंदी का प्रयोग लगभग 800 वर्ष पूर्व महाराजा पृथ्वीराज चौहान एवं उनके समकालीन अन्य प्रमुख नरेशों के राजकाज में पाया जाता है| इस भाषा के स्वरूप में राजस्थानी तथा खड़ी बोली की प्रधानता है| अरबी और फारसी के प्रचलित पारिभाषिक शब्दों को ग्रहण कर लिया गया था|5  उस समय की भाषा में तत्सम शब्दावली का प्रयोग मिलता है|

जब भारत में मुस्लिम शासकों का राज्य स्थापित हुआ तो उन्होंने भी अपने राजकाज में हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि को स्थान दिया| शाहबुद्दीन ने अपने सिक्कों पर हिंदू देवी देवताओं के चिह्न अंकित कराए| अल्तमश ने कन्नौज विजय स्मारक पर देवनागरी अक्षर अंकित कराए थे, जो अस्पष्ट हैं|6  अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राजकाज में हिंदी को समुचित स्थान दिया| अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा के तत्कालीन मुसलमान शासकों ने भी हिंदी को अपने शासन संचालन में स्थान दिया| यही नहीं शेरशाह सूरी ने अपने सिक्कों पर देवनागरी मेंश्री सीरसामश्रीनाथ संवत तथा ऊॅ अंकित कराए|7

मुस्लिम शासकों को राजकाज की भाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग मान्य था इस तथ्य को रेखांकित करते हुए डॉ. हरदेव बाहरी ने लिखा है कि मुसलमान बादशाहों के शासनकाल में चार-पांच शताब्दी तक शासन कार्य का माध्यम हिन्दी थी| डॉ. कैलाश चन्द्र भाटिया के अनुसार प्राचीन काल के सिक्कों से पता चलता है कि मोहम्मद गौरी के सिक्कों पर देवनागरी का प्रयोग हुआ था| शहाबुद्दीन (1192) ने ब्रज मिश्रित भाषा का प्रयोग किया था|8 हैदर अली और टीपू की कोरियन राजा के साथ जो सन्धि हुई उसके अनुसार राजपरिवारों के लोगों को हिन्दुस्तानी सिखाने को कहा गया था और शासन में हिन्दुस्तानी को प्रश्रय मिला| डॉ. आबिद हुसैन के अनुसार सिकन्दर लोदी के शासन काल में राज्य का हिसाब-किताब हिन्दी में होता था|9  मुगल सम्राटों के प्रशासन में देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा में लिखे जाने वाले पत्रें की भाषा हिंदी की ब्रज, अवधी, राजस्थानी और खड़ी बोलियों का सम्मिश्रण है| इन पत्रों की लिपि देवनागरी है|10

मराठों के शासन में तो हिन्दी का काफी प्रसार हुआ| शिवाजी के दरबार में हिन्दी कवि भूषण की उपस्थिति उनके हिन्दी प्रेम को ही अभिव्यक्त करती है| राजपूत राजाओं और राजपूताना रेजीडेंसी के बीच पत्र-व्यवहार हिन्दी में होता था| इसके अतिरिक्त पेशवा बाजीराव प्रथम और महाराजा जसवंत सिंह राव होल्कर के शासनकाल में हिन्दी का प्रयोग होता था| मराठा शासन में हिन्दी प्रयोग के संबंध में डॉ. केलकर ने लिखा हैअंग्रेजों ने भी हिन्दी की महत्ता को स्वीकारा था और अपने धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से उन्हें हिन्दी का सहारा लेना पड़ा और चाहते हुए भी हिन्दी के प्रचार और विकास में सहयोग दिया| हिन्दी का पहला व्याकरण सन 1698 में हालैंड निवासी जान जीशुआ केटेलर ने डच भाषा मेंहिंदुभाषी भाषानाम से लिखा|11

 

ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने शासन काल के प्रारंभिक दिनों में ही हिन्दी के प्रयोग पर काफी जोर देना शुरू कर दिया था| सन् 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने जनता से संबंधित कानूनों को हिन्दी में भी बनाने के आदेश दे दिए थे| हेनरी टामस कोलब्रुक (1765-1837), ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था : ‘जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रांत के लोग करते हैं, जो पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है और जिसको प्रत्येक गांव में थोड़े-बहुत लोग अवश्य समझ लेते हैं, उसी का यथार्थ नाम हिन्दी है|12  

हिन्दी के विकास में जिन अंग्रेजों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया उनमें गिल क्राइस्ट अविस्मरणीय है| इसके अतिरिक्त विलियम बटरवर्थ वेले, फोर्ब्स, सी.टी. मेटकाफ और फ्रेडरिक पिन्काट आदि प्रमुख हैं| फोर्ब्स ने एकहिन्दी मैनुअलदो भागों में लंदन से सन् 1845 में तथा एक कोश हिन्दी- अंग्रेजी तथा अंग्रेजी-हिन्दी दो खंडों में सन् 1848 में प्रकाशित किया था |13

स्वतंत्रता आन्दोलन और हिन्दी

स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गांधीजी के नेतृत्व में जिस प्रकार सम्पूर्ण भारत में खादी राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गई थी उसी प्रकार हिन्दी भी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक थी और स्वतंत्रता से पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा के नाम से जाना जाता था| स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी की राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठापना इस बात से सिद्ध होती है कि महात्मा गांधी ने अपने पुत्र देवदास गांधी को मद्रास में दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार करने भेजा| जातीय और भाषायी संकीर्णता के दायरे से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता की भावना ही सर्वत्र् परिलक्षित होती थी| इसी भावना को जन-जन में परिपुष्ट करने के लिए गांधीजी ने अपने पुत्र का विवाह चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की बेटी लक्ष्मी से कराया| विभिन्न भाषा-भाषियों और विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले महापुरुषों ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया| काका साहब कालेलकर महाराष्ट्र के थे परन्तु हिंदी भाषा के प्रचार में उन्होंने अपना जीवन लगा दिया| नेताजी सुभाषचन्द्र बोस बंगाल के थे पर आजाद हिन्द फौज कामार्च‘ (कूच) का गाना हिन्दी में स्वीकार किया – ‘कदम-कदम बढ़ाए जा‘| कर्नाटक के गंगाधर राव देशपांडे ने वृद्धावस्था में पुत्र के साथ हिन्दी की राष्ट्रभाषा की परीक्षा दी और तमिल के राष्ट्रकवि सुब्रमण्यम भारती ने पांडिचेरी से संपादितइदियैपत्रिका में हिन्दी पाठ प्रकाशित किए| वस्तुत: यह वह समय था जब स्वराज और राष्ट्रभाषा एक दूसरे के पूरक थे| राष्ट्रभाषा हिन्दी के बिना स्वराज की कल्पना नहीं की जा सकती थी| हर कोई राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्रभक्ति का ही परिचायक और संवाहक था|

स्वतंत्रता के साथ-साथ हमारे राष्‍ट्रनेताओं ने आत्माभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आंदोलन भी छेड़ा| भारत के लोग अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी शिक्षा के विरूद्ध बोलने लगे| हिंदी सीखना और बोलना स्वतंत्रता आंदोलन का एक अंग बन गया| लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, महामना पं. मदन मोहन मालवीय, आचार्य नरेन्द्र देव, राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन आदि नेताओं ने हिंदी की अस्मिता को पहचाना और हिंदी के प्रचार-प्रसार में जुट गए| राष्‍ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो राष्ट्रभाषा हिंदी के आंदोलन को स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जोड़ दिया| उन्होंने स्वयं हिंदी सीखी और अन्य लोगों को भी हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया| आजाद हिंद फौज में हिंदी का ही बोलबाला था| ‘जय हिंदका नारा आजाद हिंद फौज का राष्ट्रीय नारा बन गया| सुभाषचन्द्र बोस हिंदी में ओजस्वी भाषण देते थे| केशवचन्द्र सेन ने दयानंद सरस्वती को आर्य समाज का प्रचार हिंदी माध्यम से करने की सलाह दी| उन्हीं की प्रेरणा से दयानंद सरस्वती नेसत्यार्थ प्रकाशहिंदी में लिखा| स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदी भारत की राष्ट्रीय आकांक्षाओं और चेतना की अभिव्यक्ति का माध्यम थी| वास्तव में हिंदी हमारे देश की संघीय राजभाषा इसलिए बन सकी क्योंकि उसको राष्ट्रभाषा के रूप में स्वामी दयानंद सरस्वती से लेकर महात्मा गांधी तक, सबने अपना समर्थन दिया था|14

राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन ने कहा था किमेरे लिए हिन्दी की समस्या भारत की स्वतंत्रता की समस्या है | भाषा की समस्या राष्ट्र की समस्या से संबंधित होती है| भारत में अंग्रेजी भाषा की प्रधानता स्वीकार करना अंग्रेजी जीवन-सिद्घांत, के सामने सिर झुकाना है| यह हमारी बौद्धिक दासता का सूचक है| राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने एक बार राष्‍ट्रभाषा के बारे में विचार व्‍यक्‍त करते हुए कहा था कि किसी भाषा में राष्‍ट्रभाषा बनने के लिए निम्‍नांकित पॉंच विशेषताएं होनी अपेक्षित हैं:-15

  1. उसे सरकारी कर्मचारी आसानी से सीख सकें ।
  2. वह समस्‍त भारत में धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक सम्‍पर्क के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है ।
  3. वह अधिकांश भारतवासियों द्वारा बोली जाती हो ।
  4. सारे देश को उसे सीखने में आसानी हो और
  5. ऐसी भाषा को चुनते समय क्षणिक हितों पर ध्‍यान न दिया जाए ।

गांधी जी का स्‍पष्‍ट विचार था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही ऐसी भाषा है, जिसमें उपर्युक्‍त सभी विशेषताएं मौजूद हैं । गांधी जी ने कहा था-राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है|’ वस्‍तुत: राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता का संवर्धन और पोषण नहीं हो सकता| प्राचीन काल से ही हिंदी ने इसका पोषण किया है| वास्तव में हिंदी लोकभाषा है और उसकी शक्ति जनशक्ति में ही निहित है| हिंदी इस देश की जीवन शक्ति है| इस देश की सामासिक संस्कृति को व्यक्त करने की क्षमता हिंदी में है|15

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिंदी केवल पूरे देश को जोड़ने वाली राष्ट्रीय कड़ी बनी बल्कि वह अपने आप में आंदोलन का एक पवित्र लक्ष्य थी| राष्ट्रीय नेताओं, लेखकों, पत्र्कारों ने हिंदी सीखना-सिखाना देश भक्ति का जरूरी पाठ समझा था|16  

संविधान सभा और हिंदी

संविधान सभा में हिन्दी का प्रवेश 14 सितंबर, 1946 को ही हो गया था जब संविधान सभा की नियम समिति ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में यह निर्णय किया गया था कि संविधान सभा का कामकाज हिंदुस्तानी या अंग्रेजी में किया जाना चाहिए और अध्यक्ष की अनुमति से कोई भी सदस्य सदन में अपनी मातृभाषा में अपने विचार व्यक्त कर  सकता है| संविधान समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी कि संघ की संसद की भाषा हिन्दुस्तानी और अंग्रेजी होगी और सदस्यों को अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने की छूट होगी|17  प्रांतीय संविधान समिति ने यह सिफारिश की कि प्रांतीय विधान मंडलों में कामकाज प्रांत की भाषा या भाषाओं में किया जाएगा अथवा हिन्दुस्तानी या अंग्रेजी में|18 काफी लंबी बहस, वाद-विवाद और संशोधनों-रूपांतरणों के बाद अंतत: 14 सितंबर, 1949 के दिन हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई|

राजभाषा हिंदी को स्वीकार करने के साथ जब यह परन्तुक जोड़ा गया कि आजादी के बाद भी 15 वर्ष तक अंग्रेजी में ही कामकाज किया जाए तो अनेक सदस्यों ने इसका विरोध किया| उन्होंने हस्ताक्षर करके एक प्रस्ताव पेश किया | इनमें पहला नाम आचार्य जुगल किशोर का था जो 1948 में कांग्रेस के महामंत्री थे| अनेक हस्ताक्षरकर्ता दक्षिण भारत के भी थे| विवाद का निपटान करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया| 16 अगस्त को विशेष समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की | इस रिपोर्ट मेंअरबी अंकोंके स्थान परअंतर्राष्ट्रीय अंकशब्द का प्रयोग किया गया| बाइस अगस्त को    डा. अम्बेडकर ने समझौते के रूप में एक प्रस्ताव पेश किया| इसके बाद दस दिनों तक अंकों और 15 वर्ष की अंतरिम अवधि के बारे में संविधान सभाई पार्टी में बहस चली| इस बहस के दौरान जो विचार सामने आए उन्हें ध्यान में रखते हुए संविधान के उपबंधों को जो रूप दिया गया उसे मुंशी अयंगर सूत्र कहते हैं|

संविधान में राजभाषा हिंदी को किस रूप में स्वीकार किया जाए इस पर संविधान सभा में 12,13 और 14 सितंबर, 1949 को काफी बहस  हुई और अंतत: 15 वर्ष तक अंग्रेजी प्रयोग जारी रखने और  अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का प्रयोग करने को मान्यता देने के प्रस्ताव को ही स्वीकार किया गया| पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में  13 सितंबर, 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए कहा था किकिसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता| ‘ भारत के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में, जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्म विश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके हमें हिन्दी को अपनाना चाहिए|’

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बहस में भाग लेते हुए राजभाषा हिंदी और देवनागरी लिपि का समर्थन किया| उन्होंने कहा कि हम हिन्दी को मुख्यत: इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि इस भाषा को बोलने वालों की संख्या अन्य किसी भाषा के बोलने वालों की संख्या से अधिक है| उन्होंने कहास्वतंत्र भारत के लोगों के प्रतिनिधियों का कर्त्तव्य होगा कि वे इस संबंध में निर्णय करें कि हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को उत्तरोत्तर किस प्रकार प्रयोग में लाया जाए और अंग्रेजी को किस प्रकार त्यागा जाए?19

इस प्रकार हिंदी को संविधान सभा ने राजभाषा के रूप में अंगीकृत किया| संविधान सभा के सदस्यों की भावना थी कि अंतत: हिंदी ही समस्त राजकाज की भाषा होगी और पन्द्रह वर्ष की अवधि के बाद अंग्रेजी का शासन की भाषा के रूप में इस्तेमाल होगा किन्तु उनका वह स्वप्न साकार हो सका और संविधान सभा के जिन सदस्यों ने अंग्रेजी को पन्द्रह वर्ष तक राजभाषा बनाए रखने का विरोध किया था उनकी आशंका सही साबित हुई|

हिन्दी की संवैधानिक स्थिति

संभवत: विश्व के किसी भी देश के संविधान में राजभाषा के संबंध में इतना विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता जितना भारत के संविधान में हिन्दी राजभाषा के संबंध में मिलता है| संसद की भाषा से लेकर राज्यों की स्थानीय सरकारों की भाषा तक के बारे में संविधान में स्पष्ट उल्लेख और प्रावधान किया गया है|20  संघ की भाषा के संबंध में अनुच्छेद 343 (1) में व्यवस्था की गई है जिसमें कहा गया है किसंघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी|’ संविधान के अनुच्छेद 344 में राजभाषा आयोग गठित करने का प्रावधान है जो हिन्दी के राजभाषा के रूप में विकसित करने संबंधी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा| इसी अनुच्छेद में यह भी प्रावधान है कि उक्त सिफारिशों की समीक्षा एक संसदीय समिति करेगी और तत्पश्चात ही सरकार आवश्यक निर्देश जारी कर सकेगी| अनुच्छेद 345 राज्यों की राजभाषाओं के संबंध में है, जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक राज्य की राजभाषा उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली कोई एक भाषा या अनेक या हिन्दी होगी| अनुच्छेद 346 में संघ और राज्यों या परस्पर राज्यों के बीच पत्र व्यवहार की भाषा का निर्देश है| इसके अनुसार संघ की प्राधिकृत राजभाषा ही परस्पर दो राज्यों के बीच या संघ और राज्य के बीच पत्रचार की भाषा होगी| इसका अभिप्राय यह है कि हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को मान्यता प्राप्त होने के कारण इनमें से किसी भाषा में उक्त पत्राचार किया जा सकता है| किसी राज्य के जन समुदाय के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध अनुच्छेद 347 में किया गया है तथा उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय आदि की भाषा के संबंध में प्रावधान 348 में किया गया है| अनुच्छेद 349 संविधान में भाषा संबंधी विधियों को विनियमित करने के संबंध में है| हिन्दी भाषा के विकास के लिए विशेष निर्देश अनुच्छेद 351 में दिया गया है जिसमें कहा गया है कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भारत की अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भण्डार के लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणत: अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे|’ इस प्रकार उक्त अनुच्छेद में जहां एक ओर हिन्दी के विकास का दायित्व संघ सरकार को सौंपा गया है वहीं राजभाषा के स्वरूप को भी विनिर्दिष्ट किया गया है| संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 राष्ट्रीय भाषाओं को मान्यता दी गई है (संविधान बना उस समय इनकी संख्या 14 थी) और अनुच्छेद 120 में संसद की भाषा तथा अनुच्छेद 210 में विधानसभाओं की भाषाओं के बारे में     उल्लेख है|

राजभाषा आयोग : संविधान के अनुच्छेद 344 में किए गए प्रावधान के अनुसार 1955 में श्री बी.जी. खैर की अध्यक्षता में राजभाषा आयोग का गठन किया गया जिसमें अष्टम अनुसूची में उल्लिखित भाषा-भाषियों के विद्वानों को प्रतिनिधित्व दिया गया| इस आयोग को अन्य बातों के अलावा यह सिफारिश भी करनी थी कि संघ के कामकाज में हिन्दी का प्रयोग कैसे बढ़ाया जाए और कैसे अंग्रेजी का प्रयोग धीरे-धीरे कम करते हुए बंद किया जाए|

आयोग को अपनी सिफारिशें देते समय यह भी ध्यान में रखना था कि अहिन्दीभाषी क्षेत्रों के लोगों के उचित अधिकार और हित सुरक्षित रहें| आयोग ने भारतीय भाषाओं की स्थिति, भारत में भाषा की समस्या और उसके समाधान का स्वरूप, पारिभाषिक शब्दावली, संघ की भाषा और शिक्षा पद्धति, सरकारी प्रशासन में भाषा, विधि और न्यायालयों की भाषा, संघ की भाषा और लोकसेवा परीक्षाएं, हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं का प्रचार और विकास, राष्ट्रीय भाषा संबंध कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए संस्थाओं की व्यवस्था आदि अनेक विषयों के विभिन्न पहलुओं की जांच की और उन पर विचार-विमर्श के पश्चात 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की| उक्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए एक संसदीय राजभाषा समिति गठित की गई|

राजभाषा समिति : संविधान के अनुच्छेद 344 के अनुसार वर्ष 1957 में 30 सदस्यों (20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से) की संसदीय समिति का गठन किया गया ताकि राजभाषा आयोग की सिफारिशों की जांच करके उनके संबंध में समिति अपनी राय राष्ट्रपति को पेश कर सके| तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में हुए व्यापक विचार-विमर्श के पश्चात समिति ने 1959 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत कर दी| रिपोर्ट के महत्वपूर्ण मुद्दे जिनसे समिति के निष्कर्षों/सामान्य दृष्टिकोण की जानकारी मिल सकती है, इस प्रकार थे:

l राजभाषा के बारे में संविधान में बड़ी समन्वित योजना दी गई है| इसमें योजना के दायरे से बाहर जाए बिना स्थिति के अनुसार परिवर्तन करने की गुंजाइश है|

l विभिन्न प्रादेशिक भाषाएं राज्यों में शिक्षा और सरकारी कामकाज के माध्यम के रूप में तेजी से अंग्रेजी का स्थान ले रही है| यह स्वाभाविक ही है कि व्यावहारिक दृष्टि से यह बात आवश्यक हो गई कि संघ के प्रयोजन के लिए कोई एक भारतीय भाषा काम में लाई जाए| किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि यह परिवर्तन किसी नियत तारीख को ही हो| यह परिवर्तन धीरे-धीरे इस प्रकार किया जाना चाहिए कि कोई गड़बड़ी हो और असुविधा कम से कम हो|

l संविधान में किए गए प्रावधान के अनुसार 1965 तक अंग्रेजी मुख्य राजभाषा और हिन्दी सहायक भाषा रहनी चाहिए| 1965 में हिन्दी संघ की राजभाषा हो जाएगी, किन्तु उसके उपरांत अंग्रेजी सहायक राजभाषा के रूप में चलती रहनी चाहिए|

l संघ के प्रयोजनों में किसी के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर कोई रोक इस समय नहीं लगाई जानी चाहिए और अनुच्छेद 343 के खण्ड (3) के अनुसार इस बात की व्यवस्था की जानी चाहिए कि 1965 के उपरांत भी अंग्रेजी का प्रयोग इन प्रयोजनों के लिए, जिसे संसद विधि द्वारा उल्लिखित करे, तब तक होता रहे, जब तक वैसा करना आवश्यक हो|

l अनुच्छेद 351 का यह उपबंध कि हिन्दी का विकास ऐसे किया जाए कि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके, अत्यंत महत्वपूर्ण है और इस बात के लिए पूरा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए कि सरल और सुबोध शब्द काम में लाए जाएं|

संसद के दोनों सदनों में इस रिपोर्ट पर सितम्बर, 1959 में विचार-विमर्श हुआ| संसद में हुए इसी विचार-विमर्श के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने राजभाषा के प्रश्न पर सरकार का दृष्टिकोण मोटे तौर पर स्पष्ट करते हुए इस बात पर बल दिया कि अंग्रेजी को सहभाषा या अतिरिक्त भाषा बनाया जाना चाहिए और कोई भी राज्य सरकार भारत सरकार के साथ अथवा अन्य राज्य सरकारों के साथ पत्र-व्यवहार में इसका प्रयोग कर सकती है| उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि जब तक अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के लोग अंग्रेजी का प्रयोग बंद करने के लिए सहमत हो जाएं तब तक इस संबंध में कोई समय सीमा नहीं होनी चाहिए|

इस प्रकार राजभाषा आयोग की रिपोर्ट और संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदनों के परिणामस्वरूप यह तय कर दिया गया कि 1965 के बाद भी हिन्दी के अलावा अंग्रेजी के प्रयोग को जारी रखा जाए|

राष्ट्रपति का आदेश (प्रारंभिक उपायों के संबंध में) 1960 : राजभाषा समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 344 (6) के अधीन उन्हें सौंपी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग शुरू किए जाने के लिए प्रारंभिक उपायों के संबंध में अप्रैल, 1960 में एक आदेश जारी किया|21 इस आदेश में निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष रूप से की जाने वाली व्यवस्थाओं के बारे में निर्देश जारी किए गए थे|

l प्रशासनिक संहिताओं और अन्य प्रक्रिया संबंधी साहित्य का अनुवाद

l प्रशासनिक कर्मचारी वर्ग को हिन्दी में प्रशिक्षण

l हिन्दी का प्रचार, प्रसार और विकास

l केन्द्रीय सरकार के विभागों के स्थानीय कार्यालयों के लिए भरती

l प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए शिक्षण का माध्यम

l अखिल भारतीय सेवाओं और उच्च केन्द्रीय सेवाओं के लिए परीक्षा का माध्यम और भाषा विषयक प्रश्नपत्र

l देवनागरी अंकों का प्रयोग

l अधिनियम, विधेयक आदि की भाषा  

l उच्चतम न्यायलय और उच्च न्यायालयों की भाषा

l विधि के क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए प्रारंभिक कदम और

l हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए योजना का कार्यान्वयन

राजभाषा अधिनियम 1963

संविधान के अनुच्छेद 343 में यह व्यवस्था की गई थी कि संविधान लागू होने की तारीख से 15 वर्ष की अवधि तक संघ सरकार के समस्त कामकाज अंग्रेजी में ही यथावत किए जाते रहेंगे और 26 जनवरी, 1965 से अंग्रेजी का स्थान हिन्दी ले लेगी| अत: जैसे-जैसे पन्द्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति की तारीख नजदीक आने लगी-अंग्रेजी समर्थक प्रशासक वर्ग के मन में बेचैनी होने लगी और भाषायी मामले का राजनीतिकरण कर दिया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि राजभाषा अधिनियम के माध्यम से अंग्रेजी के प्रयोग को अनन्तकाल तक मान्यता दे दी गई|22

राजभाषा अधिनियम 1963 में 1967 में संशोधन किया गया| यथासंशोधित राजभाषा अधिनियम में कुल 9 धाराएं हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण धारा 3 है| इसमें यह व्यवस्था है कि संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि बीत जाने के बाद भी अंग्रेजी भाषा नियत दिन से संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए संसद के कार्य के संव्यवहार के लिए हिन्दी के साथ-साथ प्रयोग में लाई जाती रह सकेगी, जिसके लिए उस नियत दिन से पहले इसे प्रयोग में लाया जाता था| इसमें केन्द्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों अथवा कार्यालयों के बीच पत्रादि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के संबंध में भी प्रावधान किए गए हैं| इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि अधिनियम में निर्दिष्ट कतिपय दस्तावेजों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के प्रयोग संबंधी उपबंध तब तक प्रवृत्त रहेंगे जब तक अंग्रेजी के प्रयोग को समाप्त करने के लिए उन सभी राज्यों के विधानमंडलों द्वारा संकल्प पारित हो जाएं जिन्होंने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया और जब तक पूर्वोक्त संकल्पों पर विचार करते हुए ऐसी समाप्ति के लिए संसद के दोनों सदनों द्वारा संकल्प पारित कर दिया जाए|

इस अधिनियम की अन्य महत्वपूर्ण धारा-4 में यह व्यवस्था है कि 26 जनवरी, 1965 से 10 वर्षों की समाप्ति पर राष्ट्रपति की पूर्व संस्वीकृति से संसद के किसी भी सदन द्वारा इस आशय का संकल्प रखे जाने और संसद के दोनों सदनों द्वारा उसे पारित किए जाने पर राजभाषा समिति का गठन किया जाएगा| इस समिति में 30 सदस्य (20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से) सदस्य होंगे जिनका निर्वाचन आनुपातिक आधार पर एकल संक्रमणीय मत पद्घति के अनुसार होगा| इस समिति को संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करने और इस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का दायित्व सौंपा गया| यह भी व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति यह प्रतिवेदन संसद के दोनों सदनों में रखे जाने और सभी राज्य सरकारों को भेजे जाने की व्यवस्था करवाएंगे| राष्ट्रपति उपर्युक्त रिपोर्ट पर और राज्य सरकारों ने यदि रिपोर्ट पर कोई मत व्यक्त किए हैं, उन पर विचार करने के बाद पूरी रिपोर्ट या उसके किसी अंश के अनुसार निर्देश जारी करेंगे| तथापि ये अनुदेश अधिनियम की धारा 3 के उपबंधों से असंगत नहीं होंगे| अन्य बातों के साथ-साथ अधिनियम, 1963 ने संघ सरकार की राजभाषा नीति की रूपरेखा निश्चित कर दी और इसके अनुसार सरकारी कामकाज में द्विभाषिकता के युग का सूत्रपात हुआ जो पता नहीं कब तक चलेगा|

राजभाषा संकल्प 1968 : दिसम्बर, 1967 में संसद के दोनों सदनों ने एक संकल्प पारित किया जो राजभाषा संकल्प के नाम से जाना जाता है| यह संकल्प जनवरी, 1968 में भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया| इसके अनुसार यह निदेश दिया गया है कि हिन्दी के प्रसार और विकास की गति तेज करने और संघ के विभिन्न शासकीय प्रयोजनों के लिए उसके प्रगामी प्रयोग के लिए भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष एक गहन और व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाए तथा किए गए उपायों और की गई प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी जाए और सब राज्य सरकारों को भेजी जाए| इसी के अनुपालन में प्रतिवर्ष राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा एक राजभाषा वार्षिक कार्यक्रम प्रकाशित किया जाता है|

इस संकल्प के अनुसार यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए और उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्त्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन के लिए केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिन्दी अथवा दोनों जैसी भी  स्थिति हो, के उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भरती करने के लिए उम्मीदवारों के चयन के समय हिन्दी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्य होगा| इसके अतिरिक्त परीक्षाओं की भावी योजना प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी|

राजभाषा (संघ के शासकीय प्रयोजन के लिए प्रयोग) नियम 1976 : राजभाषा नीति कार्यान्वयन के लिए अब तक जो उपाय किए गए हैं उनमें राजभाषा अधिनियम की धारा 8 के अधीन बनाए गए और जून, 1976 में भारत के राजपत्र् में प्रकाशित किए गए राजभाषा नियम सबसे महत्वपूर्ण हैं|23 इन नियमों में राजभाषा नीति के कार्यान्वयन की दृष्टि से विभिन्न राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को तीन क्षेत्रों में बांट दिया गया है| ‘क्षेत्र में हिन्दीभाषी क्षेत्र बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तर प्रदेश तथा राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र अंडमान निकोबार द्वीप समूह शामिल है| ‘क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब तथा संघ शासित क्षेत्र चंड़ीगढ, दमण दीव और दादरा नगर हवेली शामिल है| ‘क्षेत्र मेंऔरक्षेत्र में शामिल राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को छोड़कर अन्य राज्य और संघ राज्य क्षेत्र शामिल हैं| इन नियमों में राज्यों आदि और केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों के साथ पत्र-व्यवहार, केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में कर्मचारियों आदि द्वारा अभ्यावेदन और आवेदन कार्यालयों में टिप्पणी आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषाओं के संबंध में प्रावधान किए गए हैं| यह भी प्रावधान किया गया है कि हिन्दी में प्राप्त पत्र आदि के उत्तर केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से हिन्दी में ही दिए जाएंगे| इन नियमों में केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए हिन्दी में प्रवीणता और हिन्दी के कार्यसाधक ज्ञान की परिभाषा दी गई है| यह भी प्रावधान किया गया है कि सभी नियम पुस्तकें, संहिताएं और अन्य प्रक्रिया संबंधी साहित्य हिन्दी और अंग्रेजी में द्विभाषी रूप में यथास्थिति मुद्रित या साइक्लास्टाइल कराया जाएगा और प्रकाशित किया जाएगा| इसके अलावा, केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में प्रयोग किए जाने वाले रजिस्टरों, सभी नामपट्टों, पत्रशीर्षों और लिफाफों पर उत्कीर्ण लेख तथा लेखन सामग्री की अन्य मदें हिन्दी और अंग्रेजी में लिखित, मुद्रित या उत्कीर्ण होंगी| इन नियमों के नियम 12 के अनुसार केन्द्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करें कि राजभाषा अधिनियम और नियमों का पूर्णत: और समुचित रूप से अनुपालन हो रहा है|

राजभाषा आदेश : भारत सरकार, गृह मंत्रालय के अंतर्गत गठित राजभाषा विभाग संवैधानिक उपबंधों, राजभाषा अधिनियम और नियमों तथा संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के अनुपालन में समय- समय पर राजभाषा का उत्तरोत्तर प्रयोग बढ़ाने के उद्देश्य से आदेश जारी करता है| रबड़ मोहरें तथा स्टेशनरी द्विभाषी हो, सम्मेलनों में हिन्दी का प्रयोग, साइनबोर्ड द्विभाषी/त्रिभाषी हो| प्रकाशनों में हिन्दी को उचित स्थान दिया जाए आदि| उक्त राजभाषा आदेशों के माध्यम से कुछ कार्य केवल हिन्दी में करने के लिए विनिर्दिष्ट किए गए हैं|

राजभाषा हिंदी का विकास : विभिन्न संस्थाओं का गठन

राजभाषा विभाग : राजभाषा संबंधी सांविधिक और कानूनी व्यवस्थाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने एवं संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के एक स्वतंत्र विभाग के रूप में जून, 1975 से राजभाषा विभाग की स्थापना की गई है|24 अपनी स्थापना के समय से ही यह विभाग संघ के सरकारी कामकाज में राजभाषा हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए प्रयास करता रहा है| इस विभाग को सौंपे गए कार्यों में राजभाषा से संबंधित संवैधानिक उपबंधों तथा राजभाषा अधिनियम 1963 के उपबंधों का कार्यान्वयन, राज्यों के उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में अंग्रेजी भाषा से भिन्न किसी भाषा का सीमित प्रयोग प्राधिकृत करने के लिए राष्ट्रपति जी का पूर्व अनुमोदन, संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित सभी मामलों के लिए नोडीय उत्तरदायित्व (इनमें केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए हिन्दी शिक्षण योजना और उससे संबंधित अन्य साहित्य जैसे पत्रिकाओं आदि का प्रकाशन शामिल है), संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित सभी मामलों में समन्वय (इनमें प्रशासनिक शब्दावली, पाठ्य पुस्तकें, मानकीकृत लिपि, प्रशिक्षण कार्यक्रम और उनके लिए अपेक्षित उपस्कर शामिल है) केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा का गठन और संवर्ग: प्रबंध, केन्द्रीय हिन्दी समिति (जिसमें इसकी उप समितियां भी शामिल हैं) से संबंधित मामले, विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा स्थापित हिन्दी सलाहकार समितियों से संबंधित कार्य का समन्वय और केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो से संबंधित मामले शामिल हैं|

 

राजभाषा नीति को कार्यान्वित करने के लिए राजभाषा विभाग द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैंसंघ सरकार के विभिन्न कार्यालयों में राजभाषा नीति के क्रियान्वयन के लिए वार्षिक कार्यक्रम तैयार करना, उन्हें परिचालित करना और उसके कार्यान्वयन पर नजर रखना, केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों को सेवा के दौरान हिन्दी का प्रशिक्षण देना जिसमें हिन्दी टंकण/आशुलिपि भी शामिल है, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के माध्यम से प्रक्रिया साहित्य का हिन्दी में अनुवाद, हिन्दी भाषा में काम करने में सक्षम टाइपराइटर, टेलीप्रिंटर, कंप्यूटर और वर्ड प्रोसेसर जैसे यांत्रिक उपकरणों का विकास और इस बारे में जानकारी का प्रचार, राजभाषा के प्रसार और विकास में तेजी लाने के लिए विभिन्न प्रकार के साहित्य का प्रकाशन और वितरण इत्यादि|

केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो : इसकी स्थापना मार्च 1971 में गृह मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय के रूप में की गई थी| केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों और सरकार के स्वामित्व में आने वाले विभिन्न उपक्रमों, निगमों, निकायों आदि के असांविधिक प्रक्रिया साहित्य जैसे मैनुअलों, कोड, फार्मों आदि के हिन्दी अनुवाद का दायित्व सौंपा गया है| केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो ने अब तक लगभग 24 लाख पृष्ठों का अनुवाद और पुनरीक्षण का कार्य किया है| ब्यूरो का प्रति वर्ष लगभग 76 हजार पृष्ठों का अनुवाद करने का लक्ष्य रहता है| इसके अतिरिक्त यह कार्यालय संवैधानिक अनुवाद प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करता है|

केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय : संविधान के अनुच्छेद 351 की व्यवस्था के कार्यान्वयन हेतु हिन्दी के प्रचार-प्रसार और विकास का दायित्व केन्द्रीय सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय (अब मानव संसाधन मंत्रालय) को सौंपा गया था| इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की मार्च 1960 में स्थापना की गई| इस संस्था को हिन्दी के प्रचार-प्रसार और उसके विकास के कार्य सौंपे गए हैं| पत्राचार द्वारा हिन्दी शिक्षण, हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए विस्तार कार्यक्रम, अहिन्दी भाषी हिन्दी लेखकों को पुरस्कृत करना आदि निदेशालय द्वारा किए जा रहे कुछ प्रमुख कार्य हैं|

वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग : राजभाषा आयोग की सिफारिशों के अनुपालन में 1961 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई| आयोग को तत्समय प्रचलित विभिन्न शब्दावलियों में समन्वय स्थापित करते हुए सभी भारतीय भाषाओं में स्वीकार की जा सकने वाली अखिल भारतीय तकनीकी शब्दावली का निर्माण करना था| आयोग ने शब्दावली निर्माण के सामान्य सिद्धांत निर्धारित करके अब तक विभिन्न विषयों के लगभग साढे आठ लाख शब्दों का निर्माण/निर्धारण किया है|  आयोग ने प्रशासन के अतिरिक्त आयुर्विज्ञान, इंजीनियरी, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, वाणिज्य आदि विभिन्न विषयों में प्रयुक्त पारिभाषिक और तकनीकी शब्दों का बहुत बड़े स्तर पर निर्माण किया है| इसके अतिरिक्त आयोग ने पाठ्रय पुस्तकें तैयार कराने के लिए अपेक्षित आधारभूत शब्द भण्डार भी उपलब्ध कराया है|

केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान : राष्ट्रपति के 27 अप्रैल, 1960 के आदेशों के अनुसार केन्द्रीय सरकार के सभी कर्मचारियों के लिए हिन्दी सीखना अनिवार्य है| इसी प्रकार उन टाइपिस्टों और आशुलिपिकों को भी हिन्दी टाइपिंग और हिन्दी आशुलिपि का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य है जिन्हें हिन्दी आशुलिपि नहीं आती| इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई थी| इसके अंतर्गत प्रति वर्ष काफी संख्या में कर्मचारियों को हिन्दी भाषा, हिन्दी आशुलिपि और हिन्दी टाइपिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है| इसकी स्थापना से 31 दिसम्‍बर, 2014 तक 17,79,098  सरकारी कर्मचारी को हिंदी भाषा, हिंदी टाइपिंग और आशुलिपि का प्रशिक्षण दिया     गया है ।  

तकनीकी कक्ष : राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए देवनागरी लिपि में कार्य करने की क्षमतायुक्त यांत्रिक/इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपलब्ध होना आवश्यक है| इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर राजभाषा विभाग के अंतर्गत तकनीकी कक्ष की स्थापना की गई है| देवनागरी में उपलब्ध यांत्रिक सुविधाओं का प्रचार-प्रसार, कंप्यूटर पर देवनागरी में कार्यविषयक गोष्ठियों/कंप्यूटर प्रदर्शनियों का आयोजन कंप्यूटरों पर हिन्दी में कार्य करने के लिए प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराना, हिन्दी शिक्षण से संबंधित सॉफ्टवेयरों का विकास, कंप्यूटरों पर आधारित अनुवाद परियोजना आदि तकनीकी कक्ष के मुख्य कार्य हैं|

राजभाषा हिंदी – मॉनिटरिंग

भारत सरकार ने राजभाषा नीति के समुचित कार्यान्वयन प्रशासन में हिंदी के विकास की निगरानी, मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से उपर्युक्त सरकारी विभागों/कार्यालयों के अतिरिक्त विभिन्न समितियों का भी गठन किया है|25  

संसदीय राजभाषा समिति : राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (4) में किए गए प्रावधान के अनुसार जनवरी, 1976 में संसदीय राजभाषा समिति का गठन किया गया, जिसका समय-समय पर पुनर्गठन होता रहा है । इस समिति का कार्य है संघ के शासकीय प्रयोजन के लिए हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करना और उस पर अपनी सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करना| यह समिति राजभाषा नीति के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करती रही है और अब तक राजभाषा से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर अपने प्रतिवेदन नौ खंड प्रस्‍तुत कर चुकी है ।

केन्द्रीय हिन्दी समिति : हिन्दी के विकास और सरकारी कामकाज में हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग के लिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा किए जा रहे कार्यक्रमों का समन्वय करने और नीति संबंधी निर्देश देने वाली यह सर्वोच्च समिति है| प्रधानमंत्री जी इस समिति के अध्‍यक्ष होते हैं तथा इस समिति में केन्द्रीय सरकार के  मंत्री, विभिन्न राज्य मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, संसद सदस्य, हिन्दी के विशिष्ट विद्वान सदस्‍य होते हैं| राजभाषा विभाग के सचिव इनके सचिव होते हैं|

हिन्दी सलाहकार समिति : सरकार के इस निर्देश के अनुपालन में  कि राजभाषा नीति का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के संबंध में आवश्यक सलाह देने के लिए जनता के साथ सम्पर्क में आने वाले विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में उनकी सलाहकार समितियां गठित की जाएं प्रत्येक मंत्रालय में हिंदी सलाहकार समिति का गठन अपेक्षित है| इन समितियों के अध्यक्ष संबंधित मंत्री होते हैं| इन समितियों के सदस्यों में हिन्दी के विद्वानों के अतिरिक्त संबंधित मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल होते हैं| वे अपने मंत्रालय में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के सबंध में आवश्यक विचार करके निर्णय लेते हैं|

राजभाषा कार्यान्वयन समिति : केन्द्र सरकार के प्रत्येक कार्यालय में, चाहे उस कार्यालय में कर्मचारियों की संख्या कितनी भी क्यों हो, राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित कराना अपेक्षित है| उक्त समितियों के अध्यक्ष संबंधित कार्यालय के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं| इन समितियों की बैठकों में कार्यालय में राजभाषा प्रयोग की स्थिति की समीक्षा की जाती है और राजभाषा प्रयोग बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाए जाते हैं|

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति :  देश के प्रत्येक नगर में जहां भी भारत सरकार के 10 या इससे अधिक कार्यालय हैं, एक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति का गठन किया गया है| इसके अध्यक्ष नगर में स्थित सबसे वरिष्ठ अधिकारी होते हैं तथा उस नगर में स्थित अन्य उपक्रमों के प्रमुख इसके पदेन सदस्य होते हैं| अब तक (15 जुलाई, 2015) तक भारत भर में 402 नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित हो चुकी हैं| बड़े नगरों में बैंकों और अन्य उपक्रमों की अलग-अलग नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित की गई हैं|

 

राजभाषा हिन्दी की वर्तमान स्थिति

राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास करने और उसे प्रायोगिक स्तर पर समर्थ और सक्षम बनाने के लिए सरकार द्वारा किए गए अनेक उपक्रमों और प्रयासों से हिन्दी ने अनेक सोपान पार किए हैं| विभिन्न क्षेत्रों यथा आयुर्विज्ञान, इंजीनियरी, प्रशासन, वाणिज्य आदि आवश्यक शब्दावली निर्माण से लेकर यांत्रिक सुविधाओं तक हिन्दी की समृद्घि की एक लंबी विकास यात्रा रही है| आज लगभग प्रत्येक कार्यालय में प्रयुक्त होने वाले मैनुअल, फार्म, संदर्भ और प्रक्रिया साहित्य हिन्दी में उपलब्ध हैं| सूचना प्रौद्योगिकी के युग में कंप्यूटर पर वे सभी काम हिन्दी में करने के लिए आवश्यक सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जो किसी भी अन्य भाषा में किए जा सकते हैं| सरकारी कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन के लिए अपेक्षित हिन्दी पदों का सृजन किया गया है और लगभग हर छोटे-बड़े कार्यालय में हिन्दी अधिकारियों-कर्मचारियों की नियुक्ति करके प्रशासन में हिन्दी प्रयोग को गति देने के आवश्यक उपाय किए गए हैं| सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन की मानीटरिंग के लिए विभिन्न एजेंसियों/समितियों का गठन किया गया है और सरकार का नोडल कार्यालय राजभाषा विभाग सभी मंत्रालयों/विभागों/उपक्रमों/कार्यालयों में तिमाही हिन्दी प्रगति रिपोर्ट मंगाकर उसमें दर्शाए आंकड़ों के आधार पर समीक्षा करता है और आवश्यक उपाय करता है| इस प्रकार निस्संदेह राजभाषा हिन्दी का प्रयोग और प्रचार-प्रसार बढ़ा है यद्यपि इसकी गति कदाचित धीमी रही है|

संविधान में राजभाषा के संबंध में काफी व्यापक व्यवस्था की गई है| बहुभाषी राष्ट्र और दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र के लिए यह आवश्यक तो है कि भाषा के प्रावधान प्रत्यक्ष-परोक्ष किसी को, किसी भी कारण आहत करें लेकिन तमाम सावधानियों के बावजूद राजभाषा को लेकर जो एकमत, समर्पण, सदाशयता और दृष्टिकोण संविधान निर्माताओं का था, वह भाव कालांतर में धूमिल पड़ता दिखाई देता है| यह बात नहीं कि  प्रशासन में हिंदी का उपयोग नहीं बढ़ा, परन्तु जितनी अपेक्षाएं स्वतंत्रता के दौरान की गई थी, वे पूरी नहीं हुई|

उपसंहार

राजभाषा हिंदी का उत्‍तरोत्‍तर विकास करने के लिए संविधान से लेकर राजभाषा अधिनियम, नियम और आदेशों के बावजूद आजतक प्रशासन में हिन्दी का विकास और प्रयोग अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पाया है| संविधान में राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकृत हुए पैंसठ वर्ष बीत चुके हैं और किसी भाषा को प्रयोग में लाने के लिए उसे समर्थ और विकसित बनाने की दृष्टि से पैंसठ वर्ष की अवधि कम नहीं होती| विश्व में भाषा के संबंध में तुर्की प्रशासक कमाल पाशा जैसे दृष्टांत हैं जिन्होंने आजादी के अगले दिन से ही अपनी भाषा को राजभाषा के रूप में स्थापित कर दिया था| जापान, जर्मनी, चीन और फ्रांस जैसे कितने ही छोटे-छोटे देश आज अपनी भाषा के बलबूते पर विश्व में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र् में अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं| न्यायालयों में हिंदी का विरोध इसलिए किया गया और अभी भी किया जा रहा है कि कानून एक अत्यंत तकनीकी विषय है और इस दृष्टि से हिंदी के विकास में कई वर्ष लगेंगे| यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिसके लिए न्याय किया जा रहा है उसी को नहीं पता कि न्यायालय में कहा क्या जा रहा है? जिस भाषा में न्याय किया जाता है उस भाषा को कितने प्रतिशत लोग जानते हैं और अभी भी कितने नियम, अधिनियम विक्टोरिया जमाने के हैं| साथ ही उनकी भाषा भी काफी दुरूह है| शायद इसलिए जब से ये नियम बने हैं किसी ने उनके विराम चिह्नों तक में परिवर्तन की हिम्मत नहीं जुटाई है|

हमें यह मान लेना होगा कि कोई भी राष्ट्र किसी विदेशी भाषाउधार ली हुई भाषा के बूते पर कभी उन्नति के शिखर पर नहीं जा सकता| भारत जैसा देश तो कतई नहीं जहां 125 करोड़ की आबादी में शासन की भाषा के मातृभाषी दो लाख भी हों और उसे जानने का दावा करने वालों की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम हों| आज आवश्यकता है मानसिकता में बदलाव लाने की| इसके लिए जरूरी है कि मौजूदा राजभाषा नीति की समीक्षा की जाए| यह देखा जाए कि प्रेरणा और प्रोत्साहन के जरिए हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने की नीति के क्या परिणाम रहे हैं ? क्या इसे दंडात्मक रूप देने की आवश्यकता  है ? समस्त भारतीयों की मानसिकता का अध्ययन करके शिक्षा और रोजगार की भाषा बनाने से ही वस्तुत: हिन्दी की प्रशासन की भाषा के रूप में मान्यता और स्वीकार्यता हो    सकती है|